मुझे टीम इंडिया से निकाला और पानी ढोने के लिए ए टीम में रख दिया, इस गेंदबाज का छलका दर्द

नई दिल्ली: 1970 और 80 के दशक में टीम इंडिया में कपिल देव और बिशन सिंह बेदी जैसे दिग्गज गेंदबाजों की धाक थी। इसके बाद 1990 के दशक में महान लेग स्पिनर अनिल कुंबले के साथ-साथ तेज गेंदबाज जवागल श्रीनाथ, वेंकटेश प्रसाद और अजीत अगरकर जैसे गेंदबाज मिले। इसी दौरान कई नाम फीके पड़ गए। इनमें से एक नाम सलिल अंकोला है। मुंबई के पूर्व तेज गेंदबाज ने 1989 में सचिन तेंदुलकर के साथ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। उन्होंने टीम इंडिया से बाहर होने से पहले एक टेस्ट और 20 एकदिवसीय मैच खेले। अब उन्होंने टीम से बाहर होने का दर्द बयां किया है।

क्रिकबज से बात करते हुए सलिल अंकोला ने कहा, “मुझे एक समय भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया और भारत ए के लिए केवल ड्रिंक ले जाने के लिए चुना गया। 2001 के बाद से मैं पूरी तरह से क्रिकेट से दूर हो गया था। 2001 में मैंने एक बड़ी गलती की थी कि सोनी ने मुझे क्रिकेट में नौकरी की पेशकश की और मैंने मना कर दिया। मुझे नहीं पता क्यों। मुझे नहीं पता कि मैंने ऐसा मूर्खतापूर्ण निर्णय क्यों लिया, लेकिन मैंने मना कर दिया। शायद मुझे क्रिकेट से इतनी नफरत हो गई थी कि मैंने खेल देखना ही बंद कर दिया।”

2010 में अंकोला ने अपने निजी जीवन में काफी उथल-पुथल का सामना किया। अपनी पहली पत्नी और बच्चों से अलग होने के बाद भारत का पूर्व तेज गेंदबाज को शराब की लत लग गई। एक दशक के रिहैब और अपने जीवन को पटरी पर लाने के लिए अंकोला ने एक बार फिर क्रिकेट को चुना और वह पिछले साल मुंबई के मुख्य चयनकर्ता बने।

इसे लेकर अंकोला ने कहा, “मैं तब लगभग 52 वर्ष का था। एक बार जब आप 50 को पार कर लेते हैं, तो आपकी धारणा बदल जाती है। मुझे नहीं पता कि कैसे और क्यों, लेकिन ऐसा होता है। आप महसूस करते हैं कि आप बहुत सी चीजों के बारे में अडिग थे, लेकिन उन चीजों का वास्तव में कोई मतलब नहीं था। वे केवल आपको परेशान कर रहे हैं। मैंने वापस क्रिकेट की ओर रुख न करने का पहले ही मन बना लिया था, लेकिन असलियत में, मुझे वास्तव में क्रिकेट की कमी खल रही थी।”

अपने पूर्व साथी खिलाड़ियों की मदद से अंकोला धीरे-धीरे फिर से क्रिकेट से जुड़े। उन्होंने कहा, “मैं बतौर कोच वापसी करना चाहता था, लेकिन जब मैंने देखा कि परिदृश्य क्या है, तो मुझे एहसास हुआ कि कोचिंग मेरे बस की बात नहीं है। 1990 के दशक में कोचिंग और अब कोचिंग में बहुत बड़ा अंतर है। मैंने एनसीए में लेवल 2 के कोच के लिए नामांकन भी किया था, लेकिन फिर मैंने राहुल द्रविड़ को पत्र लिखा और कहा कि मैं नहीं आ पाऊंगा क्योंकि मैं खुद को कोच के रूप में नहीं देखता। मुझमें इतना सब्र नहीं है, मैं बहुत गुस्से वाला आदमी हूं।”

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