संतरे बेच कर गांव के लिए खोला स्कूल, बने पद्मश्री के हकदार, जानिए कौन हैं हरेकाला हजब्बा?

68 वर्षीय हरेकाला हजब्बा संतरे बेचते हैं. एक दिन में 150-200 रुपए ही कमा पाते हैं. लेकिन उन्होंने इस कमाई से वो काम कर डाला कि 8 नवंबर 2021 को भारत सरकार ने उन्हें देश के चौथे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा।

खबर बताने से पहले एक किस्सा. एक बार क्लास में टीचर ने हमसे पूछा कि आपके जन्मदिन पर दो दोस्त आपको गिफ्ट देते हैं. एक दोस्त हजार रुपए का गिफ्ट देता है और दूसरा 50 रुपए का. कौन सा महंगा है? सबने कहा, हजार रुपए वाला तोहफा महंगा है. फिर टीचर ने कहा, लेकिन जिसने हजार रुपए का गिफ्ट दिया, वो महीने में 10 लाख रुपए की कमाई करता है. और जिसने 50 रुपए का गिफ्ट दिया, वो एक दिन में सौ रुपए ही कमा पाता है. तो अब बताओ कि किसका गिफ्ट महंगा है?

अब सवाल का सीधा जवाब देना आसान नहीं था. क्योंकि पैसे वाली कीमत देखें तो हजार रुपए का गिफ्ट बड़ा है, लेकिन भावनाओं की कीमत समझने वालों के लिए 50 रुपए वाला गिफ्ट बेशकीमती होगा. क्योंकि उसमें आपके प्रति आपके दोस्त का समर्पण दिखता है. उसने अपनी एक दिन की आधी कमाई आपके नाम कर दी, जिसके लिए शायद उसने बहुत ज्यादा मेहनत की हो. कर्नाटक के मैंगलोर में रहने वाले हरेकाला हजब्बा की कहानी भी ऐसी ही है. बस उनका समर्पण व्यक्ति नहीं, बल्कि समाज के प्रति है।

जानिए क्या है हरेकाला हजब्बा की कहानी?

कई सालों पहले की बात है. हरेकाला हजब्बा रोज की तरह संतरे बेच रहे थे. तभी एक विदेश पर्यटक उनके पास आया और संतरों का भाव पूछा. लेकिन हरेकाला को कुछ समझ ना आया. वे उस पर्यटक को संतरों का भाव तक नहीं बता सके. इस बात पर उन्हें ऐसी शर्मिंदगी महसूस हुई कि एक बड़ा फैसला कर लिया।

द बेटर इंडिया नाम की वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक इस वाकये के बाद हरेकाला हजब्बा ने स्कूल बनाने की कसम खा ली ताकि उनके गांव की आने वाली पीढ़ी को उनकी तरह शर्मिंदा ना होना पड़े. इसलिए हरेकाला ने अपनी हर दिन की कमाई को स्कूल बनाने में लगा दिया. साल 2000 में हरेकाला ने ये कारनामा कर दिखाया. उन्होंने जीवनभर की कमाई से गांव में स्कूल खोला. समाज के प्रति उनके इस बेमिसाल समर्पण को भारत सरकार ने पहचाना और उन्हें पद्मश्री देकर सम्मानित किया।

हरेकाला कहते हैं कि उन्हें कभी भी शिक्षा प्राप्त करने का कोई मौक़ा नहीं मिला, और वो नहीं चाहते थे कि गांव के बच्चों का भी ऐसा ही हाल हो. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हरेकाला हजब्बा के गांव के बच्चों को भी ठीक प्रकार से शिक्षा नहीं मिल रही थी. इसलिए उन्होंने अपनी कमाई में से बचत कर उनके लिए स्कूल शुरू करने का निर्णय लिया था।

न्यूज़ 18 की ख़बर के हवाले से हजब्बा का लोअर प्राइमरी स्कूल शुरुआत में एक मस्जिद से चलता था. जिसे लोग हजब्बा अवरा शाले के नाम से जानते थे. कुछ वक़्त बाद जिला प्रशासन ने हजब्बा को 40 सेंट ज़मीन दी. इसके बाद वहां क्लासरूम का निर्माण करवाया गया. हजब्बा आगे अपने गांव में प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज भी बनवाना चाहते हैं।

जनवरी 2020 में ही हरेकाला हजब्बा को पद्मश्री पुरस्कार मिलने की घोषणा कर दी गई थी. लेकिन कोरोना महामारी के चलते समारोह आयोजित नहीं किया जा सका.

Leave a Comment